~सगुणा सिन्हा
“मैंने तो माँगा था तुझसे ककड़ी खीरे और प्याज़ का सलाद,
बिना सोचे समझे तूने कह दिया तलाक़- तलाक़- तलाक़ !!!”
इस विश्व में स्थापित सभी धर्मों ने तलाक़ को एक कलंक के रूप में माना है । इस दुनिया में नए स्थापित धर्मों में से एक इस्लाम है।इस्लाम की स्थापना प्रोफेट मुहम्मद साहब ने करी थी ।प्रोफेट साहब ने स्वयं पाक कुरान में तलाक़ को समाज का एक कलंक माना है ।
भारत में मुसलमान व्यक्तिगत विधि संहिताबद्ध नहीं है । भारतीय मुसलमान , मुसलमान स्वीय विधि (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 द्वारा संचालित होते हैं । यह अधिनियम भारतीय मुसलमानों के विवाह , तलाक़ , विरासत, उत्तराधिकार आदि से संबंधित है ।
मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम , 1939 ; भारतीय मुसलमान महिलाओं के पक्ष में अधिनियमितकिया गया था। यह अधिनियम उन परिस्थितियों से संबंधित है जिनमें भारतीय मुसलमान महिलाएं तलाक़ प्राप्त कर सकतीं हैं । यह अधिनियम जितनी सरल वाक्या करता है उतना ही मुश्किल था इसके अंतर्गत एक भारतीय मुसलमान महिला के लिए तलाक़ को प्राप्त करना। इस अधिनियम के प्रावधानों ने बेहद कठिन कर दिया था तलाक़ हासिल कर पाना ।
सन 1972 में जब केंद्रीय सरकार ने बिल के माध्यम से समान नागरिक संहिता को महत्व देते हुए मुसलमान स्वीय विधि (शरीयत)आवेदन अधिनियम,1937 को हटाकर मुसलमान निजी विधि को संहिताबद्ध करने की कोशिश करी तब भारतीय मुसलमानों ने एकतृत होकर “ऑल इंडिया मुसलमान पर्सनल लॉ बोर्ड” की स्थापना करी । यह संगठन भारतीय मुसलमान स्वीय विधि (शरीयत)आवेदन अधिनियम,1937 की सुरक्षा के लिए उपयुक्त कार्यनीतियो को स्थापित करता है ।
“उजड़ती है दुनिया उसकी , घर भी राख होता है
जब किसी मासूम का यूँ तलाक़ होता है !!!”
चूंकि भारत में मुसलमान निजी विधि पूर्ण रूप से संहिताबद्ध नहीं है तो मुसलमान विधि को प्रत्येक मुस्लिम जाति के अनुसार माना जाता है । मुस्लिम विधि में तलाक़ का अर्थ- पति का पत्नी को खण्डन कर उन शक्तियों के प्रयोग में अस्वीकार करना जिसे विधि ने उसे प्रदान किया है। मुस्लिम निजी विधि में तलाक़ तीन प्रकार से दिया जाता है:-
- पति द्वारा:
1) तलाक़-ए-सुन्नत:
अ) अहसन– यहाँ पर पति तलाक़ की एकल घोषणा करता है जब पत्नी तूहर काल में होती है या फिर पत्नी जब माहवरी से मुक्त होती है ।
ब) हसन – इसमें पति का आवश्यक होता है कि वह तीन तूहरो के दौरान तलाक़ बोले ।
2) तलाक़-ए-बिद्दत : यह सबसे गैर अनुमोदित तलाक़ का रूप है ।
अ) तीन बार घोषणा (अल तलाक़ अल बैन): इस रूप में तलाक़ शब्द को तीन बार तूहर बोलने से तलाक़ माना जाता है ।
ब) एकल अपरिवर्तनीय घोषणा : यहाँ पर तलाक़ को या तो एक तूहर में या अन्यथा लिख देने से तलाक़ माना जाता है|
3) ईला: तलाक़ के इस रूप में पति शपथ लेता है कि वह 4 महीने तक अपनी पत्नी के साथ संभोग नहीं करेगा । 4 माह के समाप्ति के बाद विवाह खत्म हो जाता है ।
4)ज़िहार: इसमें पति अपनी पत्नी की तुलना एक ऐसी महिला से करता है जो उसके निषिद्ध संबंधों में होते हैं जैसे मा बहन आदि।
- पत्नी द्वारा:-
1) तलाक़-ए-तफवीज़ : इस तलाक़ के रूप में पति स्वतंत्र होता है और प्रतिनिधित्व के लिए अपनी पत्नी को शक्ति देता है कि वह तलाक़ की घोषणा कर सके।
2)लियान : अगर पति को यह आभास होता है कि पत्नी ने व्यभिचार किया है और पत्नी को यह आभास होता है कि पति ने चरित्र हरण किया है । तब मुस्लिम विधि, महिला को तलाक़ का पूरा हक़ देती है ।
III. पारस्परिक सहमति से:-
1) खुला: एक मुस्लिम महिला का अधिकार है कि अगर वह अपने पति के साथ खुश नहीं है तो वह खुला की माँग कर सकती है।
2)मुबारत- यह वह तलाक़ का रूप है जिसमें तलाक़ पारस्परिक सहमति से होता है ।
“तलाक़ तो दे रहे हो गरूरो के
मेरा शबाब भी लौटा दो मेरे मेहर के साथ!!!”
इस दुनिया में कई मुस्लिम शिक्षाविदों एवं विद्वानों ने ‘तीन तलाक’ उर्फ ‘तलाक-ए-बिद्दत’ को गैर इस्लामी घोषित किया है । इन शिक्षाविदों और विद्वानों के अनुसार कुरान एवं हदीथ में कहीं भी इस प्रकार के तलाक़ का जिक्र नहीं किया गया है।
संक्षिप्त में तीन तलाक वह साधन है जिससे मुस्लिम पति अपनी पत्नी को तीन बार “तलाक” शब्द कहकर अपने विवाह को तोड़ सकता है। तलाक-ए-बिद्दत द्वारा स्थापित प्रावधान अनुसार ऐसे तलाक़ स्थिर होते हैं, विवाह समाप्त हो जाता है।
तलाक़-ए-बिद्दत इन दिनों फोन,मैसेज,फेसबुक,ई-मेल,वाट्स एप्प आदि के जरिए बोला जाने लगा है। ऐसी निम्न घटनाएं लगातार भारत में बढ़ती जा रही थीं। इसमें आदमियों पर तो कोई असर नहीं पड़ता किंतु औरतें जो आर्थिक रूप से आदमी पर निर्भर थीं उन्हें बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। आर्थिक समस्याओं के साथ भावनात्मक रूप से भी बिखर जाती हैं । समाज के सामने भी उपेक्षा महसूस करती हैं ।
भारत में तीन तलाक के मुद्दे की लहर तब चाली हुई जब श्रीमती शाहबानो जी की प्रकरण संचिका का लोगों को आभास हुआ । भारत में इस केस ने भारतीय मुसलमान महिलाओं के लिए एक नई उम्मीद जगा दी।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत उन राष्ट्रों में से एक है जिसने “महिलाओं के प्रति सभी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने के लिए अभिसमय”(सीडॉ) पर हस्ताक्षर किए हैं । यह अभिसमय महिलाओं के प्रति भेदभाव को वर्णन करता है । महिलाओं के प्रति भेदभाव को इस प्रकार वर्णन किया गया है :-
- लिंग के आधार पर
- .बहिष्करण
- राजनीतिक
- आर्थिक
- सामाजिक
- सांस्कृतिक.क्षेत्रों से संबंधित मानवाधिकारो एवं मौलिक स्वतंत्रता को निरस्त करता हो ऐसा करने का उद्देश्य रखता है ।
भारत इस अभिसमय का हस्ताक्षरकर्ता तो बन गया किंतु मुसलमान महिलाओं को पूर्ण रूप से इंसाफ नहीं दिलवा पाया क्योंकि भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है और धार्मिक मुद्दों में दखल नहीं देता। किंतु बात जब मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की थी तब भारत की केंद्रीय सरकार ने मुद्दे को उठाया।
हाल ही में तीन तलाक़ ने एक आंदोलन का रूप लिया जब श्रीमती शायरा बानो जी ने सर्वोच्च न्यायालय तीन तलाक़ और निकाह हलाला को चुनौती देते हुए अर्ज़ी दायर करी। भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने ‘तीन तलाक’ उर्फ़ ‘तलाक-ए-बिद्दत’ को अमान्य, अवैध और असंवैधानिक घोषित किया। पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने 3:2 के मत से ये फैसला सुनाया। फैसले में तीन तलाक को कुरान के मूल तत्व के खिलाफ बताया गया।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने हमेशा ने तीन तलाक को एक धार्मिक निजी मुद्दा माना है और सरकार एवं न्यायालयों से कहा है कि उनके निजी मुद्दों में दखल ना किया जाए।
सन 2017 में मुस्लिम महिला( विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019 को लोकसभा में प्रस्तुत किया गया किंतु संशोधनों की वजह से उसे रोक दिया गया। 2019 में फिर से जब ये विधेयक प्रस्तुत किया गया तब इस विधेयक को राज्यसभा में भी पारित कर दिया गया। rtइस विधेयक के तहत तलाक अर्थात तलाक़-ए-बिद्दत का कोई भी कथन जो एक पति द्वारा पत्नी के लिए किया जाएगा
- वह शून्य एवं अवैध माना जाएगा।
- पति को 3 साल की कारावास की सजा होगी जुर्माने के साथ
- ऐसा अपराधी संज्ञेय और गैर जमानती माना जाएगा
तुर्की, इंडोनेसिया,इराक, बंग्लादेश जैसे कई इस्लामिक देशों ने ‘तीन तलाक़ ‘ उर्फ़ ‘तलाक़-ए-बिद्दत’ को गैर कानूनी और असंवैधानिक माना है ।
निष्कर्ष :-
“वस्ल का है या फिर फिराक का
ये मौका भी अजीब इत्तेफाक का है
शादी के लड्डू बहुत खाए हैं हमने
पर सुना है जश्न आज तलाक़ का है !!!”
सभी धर्मों को समय के अनुसार आवश्यक बदलाव करते रहना चाहिए। जिससे कि किसी के हितों को क्षति न पँहुचे। तीन तलाक़ जैसी कुप्रथाओं को समाज से पूरी तरह समाप्त कर देना चाहिए। भारत सरकार द्वारा तीन तलाक़ के विरुद्ध संसद में प्रस्तुत विधेयक महिलाओं का सशक्तिकरण करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। भारतीय मुस्लिम महिलाओं के लिए तीन तलाक़ उर्फ़ तलाक़-ए-बिद्दत का समाप्त होना एक ऐतिहासिक जीत से कम नहीं था ।