“गाडफादर” के प्रथम कुछ दृश्य में, एक न्याय में विश्वास रखने वाला अमेरिकी नागरिक अमेरिगो बोनासेरा अपनी बेटी के बलात्कार जैसे संगीन जुर्म से पीड़ित होने के बाद न्याय के उम्मीद लिए पुलिस के पास जाता है, परन्तु न्याय न मिलने पर वह उस क्षेत्र के कुख्यात अपराधी कोर्लेओने के पास जाता है, तो वह ये कहता है कि,” तुम पुलिस के पास क्यों गए ? तुम्हें सबसे पहले मेरे पास आना चाहिए था “, बहुत दुःख के साथ ये कहना पड़ता है कि ये हमारे तंत्र का एक मनहूस और दुखद सत्य है |
हमारे पूरे देश में इस वक्त लगभग 56 लाख मुकदमे लंबित है, और लगभग 40% न्यायाधीशों के पद केवल उच्च न्यायालय में रिक्त है जो हमारे तंत्र की न्याय के प्रति जिम्मेदारी का प्रमाण है | चाणक्य ने कहा था कि वही राज्य ही कल्याणकारी राज्य बन सकता है, जहाँ का राजा न्याय के उच्च मानकों की स्थापना करे | लेकिन वर्तमान परस्थितियों में सिर्फ ये बीरबल के हसीन सपने जैसा लगता हैं | भारत का स्थान “ रूल ऑफ ला “ नामक रिपोर्ट में 115 देशों में 63वां रहा, अगर मूलतः बिन्दुओं पर बात की जाये, तो क्रमशः सुरक्षा, नागरिक न्याय और मौलिक अधिकारों के क्षेत्र में हमारा स्थान 98, 97 और 75वां रहा जो कि हमारे गिरते हुए न्यायिक मूल्यों का एक जीता जागता सबूत है |
इन सभी कारणों के देखते हुए हमें यह स्वीकार कर लेना चहिये कि हमारा न्याय तंत्र ध्वस्त हो चुका है, जिसको काफी मरम्मत और पुनर्निर्माण की आवश्यकता है | इन सभी को देखते हुए हर नागरिक यही चाहता है कि उसका सामना इस तंत्र से कभी न हो क्यूंकि यह कहा गया है कही भी अन्याय होना, हर जगह के न्याय के लिए खतरा है आज के इस न्यायिक परिवेश को देखते हुए सिर्फ यही कहा जा सकता है कि अगर हम गाय की खोज में निकलेंगे तो हमें भेड़ों को भी खोना पड़ेगा |
भारतीय न्यायपालिका के अंदर जड़ित समस्याओं को सुधारना शायद आसमान से तारे को तोड़ने से भी मुश्किल लगता है , ये समस्याएं इतनी गहरी पैठ बना चुका है कि इन को सुधारने के लिए एक साथ कई मोर्चों पर सुधर कि आवश्यकता है क्यूंकि इनमे काफी ज्यादा हिस्सेदार है और उनके स्वार्थ विभिन्न विषयों में निहित है जिनको सिर्फ इस समस्या का एक अंग दिखता है, या फिर यूँ कहा जाए की वे सिर्फ समस्या एक हिस्से को ही देखना चाहते हैं, पूरा तंत्र इतना अलग-थलग और गैरजिम्मेदार हो चुका है कि ऐसा प्रतीत होता है कि शायद ये हमारे सभी समस्याओं कि जननी है | हमारी न्यायपालिका तमाम तरह की बीमारियों से ग्रसित हो चुकी है,जिसमें कुछ प्रमुख समस्याएं निमन्वत है :-
- कानून का मकड़जाल – हमारे तंत्र में नियमों का एक ऐसा ताना-बाना बुना गया है, जिसमे कोई नागरिक एक बार उलझ जाये, तो उसका निकलना बहुत ही मुश्किल हो जाता, वस्तुतः ये सभी समस्या उन व्यक्तियों के लिए है, जो समाज के नीचले श्रेणी से सम्बन्ध रखते हो |
- न्यायाधीशों की कमी – ये एक ऐसी समस्या है जिसपर हमें सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है, एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे उच्च न्यायालयों में लगभग 2,00,000 जजों की कमी है और हमारे निचली अदालतों में लगभग 40% जजों की कमी है,जिसपर हमें काफी ज्यादा कार्य करने की आवश्यकता है और ये सभी कार्य प्राथमिकता के तौर पर किये जाएं ये सभी प्रश्न हमारे न्याय व्यवस्था और अस्मिता से सम्बंधित है |
- मुकदमों का अम्बार– जब सारा विश्व इस महामारी से गुजर रहा है , तब हमारी न्याय पालिका भी इससे बची हुई नहीं है, हाल ही में किये गए एक अध्ययन से यह बात स्पष्ट होती है कि इस महामारी के दौरान हमारी लचर प्रणाली के कारण लगभग 8,00,000 ऐसे मामले रहे है जिनका निपटारा किया आधुनिक तकनीक की सहायता और उसके व्यापक स्तर के प्रयोग से किया जा सकता था ,परन्तु सीमित संसाधनों के वजह से और आधुनिक तकनीकों का ज्ञान न होने के कारण न किया जा सका | एक रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में हमारे न्यायालयों में लगभग 50,00,000 से अधिक मुकदमे लंबित है |
- पुरातन न्याय प्रक्रिया– हमारे न्याय तंत्र की प्रक्रिया आज भी नैतिकता और लोक मूल्यों पर आधारित है, जहाँ एक अपराधी को भी अपने बचाव का पूर्ण अवसर और समय दिया जाता है, जो कि न्यायसंगत और विधि के सभी सिद्धांतो के अनुरूप भी है परन्तु कभी-कभी अपराधी इसका गलत उपयोग करते है जो कि हमारे स्थापित मूल्यों के विपरीत है |
- अविकसित स्थानीय न्याय प्रणाली – हमारे देश लंबित मुकदमों का एक कारण ये भी है कि हमारे यहाँ स्थानीय न्याय प्रणाली अस्तित्व में तो है,परन्तु पूर्ण रूप से विकसित नहीं और ना ही वे अपने कर्तव्यों का सम्यवक निर्वहन करते है,जिसका नतीजा ये होता है कि लघु और मध्यम स्तर के विवाद जिनका निपटारा स्थानीय स्तर पर हो जाना चाहिए नहीं हो पाता और न्यायालयों में मुकदमों का अम्बार बढ़ता चला जाता है |
परन्तु आलोचना उस वक्त उचित और न्यायसंगत नहीं हो सकती,जब तक कि उसके समाधान का कोई तरीका प्रस्तुत न कर दिया जाए, हमारी गिरती हुई न्याय व्यवस्था में एक उत्थान के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाये जा सकते है-
- न्यायिक पदों पर नियुक्ति – हमें सर्वप्रथम,जो रिक्त न्यायिक पद हमारे यह खाली पड़े हुए है उसपर नए जजों की नियुक्ति करनी होगी जिससे कि लंबित मुकदमों का त्वरित निस्तारण किया जा सके और न्यायिक शिथिलता में एक नए उर्जा का संचार हो सके |
- अप्रासंगिक कानूनों का उन्मूलन – हमें अपना ध्यान इस बिंदु पर भी केंद्रित करना होगा कि हमारे व्यवस्था में जो भी कानून और नियम अप्रांसगिक हो चुके है, उन्हें प्रचलन से हटाना होगा और जो भी नियम ऐसे जिनमे कुछ यथासंभव सुधार किया जा सकता है, वो हमें करना चाहिए जैसे कि किसी आरोपी को गिरफ्तार करने से लेकर उसे न्यायालय में पेश किया जाने वाले समय को 24 घंटे से घटाकर कुछ कम किया जा सकता है, और ऐसे ही आरोप पत्र दायर करने के समय को 90 दिन से घटाकर कुछ कम किया जा सकता है, जिससे कि कुछ तेजी आएगी और लंबित मुकदमों के निस्तारण में फुर्ती आएगी |
- स्थानीय न्याय तंत्र को विकसित करना – हमें अपने स्थानीय न्याय तंत्र को भी विकसित करना होगा जिससे कि ऐसे विवादों का निस्तारण स्थानीय स्तर पर किया जा सके जिसमे वस्तुतः न्यायालय के हस्तक्षेप कि आवश्यकता न हो |
अंत में सिर्फ यही कहा जा सकता है कि आशा और विश्वाश ही परिवर्तन की पूर्व शर्त होती है | हमें इस बात पर पूर्ण विश्वाश रखना होगा की हम समय के साथ इन सभी चुनौतियों को पार पाने में सफल होंगे और पुनः अपने गौरवमयी न्याय प्रणाली को पुनर्जीवित करने में सफल होंगे, जिससे की हम न्याय के उस किरण को हर उस व्यक्ति तक पहुंच सके जिसे इसकी आवश्यकता हो |
लेखक–
हर्ष मिश्रा
विधि संकाय, लखनऊ विश्वविद्यालय
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